इस्लाम से पहले के ज़माने को दौर-ए-जाहिलियत कहा जाता है, क्यों कि अरब बड़ी सख्त जान थे। रेत में जिंदगी रेत की ही तरह बिखरी हुई थी। कुनबों, कबीलों ने पूरे अरब को बांट रखा था। श्रेष्ठता की लड़ाई चरम पर थी। ऐसे में उन्हें एक करने का एक सिरा रब के आदेश पर पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम ने पकड़ा। मानवता के महा उपकारक को लगा कि दिल तभी एक हो सकते हैं जब पहले लोग त्याग सीखें।
रब के आदेश पर उन्होने त्याग और धैर्य के मर्म को उन्होंने अरब में आम कर दिया, उनके पूरे जीवन को त्याग से भर दिया, जिसके प्रसिक्षण के लिए रमज़ान का महीना मिला, रमज़ान के पूरे महीने वह त्याग कर पाए। पूरे महीने वह उस चीज को छोड़ पाए, जिसके लिए पूरे साल भागते फिरते हैं। हर उस चीज से मुंह फेर ले गए, जो उनको कमजोर करती थी।
इसी महीने ज़कात देकर अपने से पीछे हुए लोगों को बराबर लाने का प्रयास भी किया गया। इस तरह छोटी-छोटी चीजों से दिलों को करीब लाया गया, सही मायने में ईद की खुशी खुद को संतुलित करने और समाज को बराबरी पर लाने का मौका है। पूरे महीने में निकली ज़कात और खैरात हर एक के तन पर नया कपड़ा लाने, घर पर बेहतरीन पकवान होने और अमीर गरीब के दस्तरखान का फर्क मिटाने का मौका है। इस पर भी अगर कहीं कोई फर्क रह जाए तो ईद पर हर एक से गले मिलकर, बराबरी को मजबूत करने का मौका है।
ईद और रमजान ने बिखरे दिलों को एक कर दिया। गरीब की भूख, जरूरत और ख्वाहिश ने अमीर को महसूस करने पर मजबूर कर दिया। जिस दिल में यह अहसास जग जाएगा, वह दिलों का यह फर्क मिटाने के लिए खुद-बखुद तड़प उठेगा।
रमज़ान और ईद अल्लाह की ऐसी असीम दया कृपा है जिसने पूरी दुनिया को अपनी आगोश में ले लिया। जो किसी भी पड़ोसी की तड़प, बेचैनी और मायूसी को महसूस करके उसे दूर करने में लगेगा, वह रमजान और ईद को सही से मान पाएगा। जो दिलों को जोड़ेगा, मोहब्बत को फैलाएगा और इंसानियत, बराबरी को समझेगा, वही तो ईद को जान पाएगा।
इसलिए हमें ईद की अपनी खुशी में हर किसी को शामिल करने की आवश्यकता है, खुशी भी वही होती है जिसमें सभी शामिल हो, इसलिए ईद के दिन अपने गैर मुस्लिम पड़ोसियों और दोस्तो को अपने घर बुलाए या उनके घर मिठाई या सेवईं भेजे।
ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों को छांव में बैठने की व्यवस्था करें उनके लिए भी मिठाई और सेवईं का इन्तिजाम करें।
ईद की नमाज़ अदा करने से पहले फितरा निकाले और फितरा निकालने से पहले अपनी जिन्दगी पर गौर करें,
अगर आप ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड शू, ब्रांडेड मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो ब्रांडेड आइटम के साथ फितरा दें,
यानी फितरा का भुगतान खजूर, किशमिश या पनीर के भाव की गणना की गई राशि से फितरा अदा करें, न कि 20 रुपये प्रति किलो के गेहूं से।
*ताकि ईद की खुशियां गरीबों के घर में भी आ सकें*