बच्चों का बचपन, युवाओं का खेल और समाज से समरसता


*बच्चों का बचपन, युवाओं का खेल और समाज से समरसता..!!*

स्मार्ट फोनों ने लोगों की जीवनशैली बदल दी है!अब तो ऐसा हो गया है कि लोग बिना मोबाइल के रह ही नहीं सकते हैं। हर कोई मोबाइल की अपनी दुनिया में इतना व्यस्त है कि पास में कौन बैठा है, इसकी भी सुध नहीं रहती। घर-दफ्तर से लेकर यात्रा तक संवाद की कड़ियां टूट गई हैं। हालांकि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि मोबाइल से कई प्रकार की सुविधाएं मिली हैं। पैसा भेजने से लेकर संवाद करने तक में आसानी हो गई है, लेकिन इसने बच्चों का बचपन, युवाओं का खेल और समाज से समरसता छीन ली है अब गांव में भी लोग एक साथ बैठे दिखाई नहीं देते!चाय की दुकानों या चौपाल पर भी चर्चा नहीं होती!शोधकर्ताओं का कहना है कि तकनीक हमारे जीवन को आसान बनाने और हमारी सहायता के लिए है लेकिन इस पर अधिक निर्भरता ठीक नहीं इसीलिए स्मार्टफोन का उपयोग करें, लेकिन इसकी सीमाओं को तय करना भी जरूरी है।


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