रामपुर । जनपद में ग्रीष्म कालीन धान/साठा धान की खेती प्रतिबंधित की गयी है। इस संबंध में जिलाधिकारी जोगिंदर सिंह ने सभी एसडीएम सहित कृषि विभाग के अधिकारियों को जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि ग्रीष्म कालीन धान/साठा धान के स्थान पर अन्य कम पानी चाहने वाली एवं अधिक लाभ देने वाली जैसे उड़द, मूंग, सूरजमुखी, मक्का, सब्जियों आदि फसलें विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं। इन फसलों की पकने की अवधि भी कम होती है तथा जिसके फलस्वरूप खरीफ फसलों की बुवाई भी ससमय की जा सकती है। इसके अतिरिक्त जिले में कृषि विभाग के राजकीय कृषि बीज भण्डारों ? द्वारा मक्का, उड़द एवं मूंग के बीज कृषकों को अनुदान पर उपलब्ध कराये जाएंगे। वर्तमान समय में मक्का, उड़द, मूंग, सूरजमुखी, मक्का
आदि फसलों के बीज जनपद के निजी बीज विक्रय केन्द्रों पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। जिला कृषि अधिकारी कुलदीप सिंह राणा ने रविवार को बताया कि जनपद में अब तक लगभग 10000 से 15000 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर ग्रीष्म कालीन धान/साठा धान की खेती की जाती रही है। ग्रीष्म कालीन धान/साठा धान की खेती माह फरवरी से प्रारम्भ होकर माह मई तक की जाती है। इस समय वर्षा की कोई सम्भावना नहीं होती है और इस दौरान धान की खेती पूर्ण रूप से भूमिगत जल पर आधारित रहती है। जल के अत्यधिक दोहन से भूमिगत जल का स्तर निरन्तर नीचे जा रहा है एवं निकट भविष्य में जल संकट भी उत्पन्न हो सकता है। बताया कि साठा धान की खेती करने से पूर्व खेत की तैयारी के समय खेत में पानी भरकर पडलिंग की प्रक्रिया की
जाती है, जिससे मिट्टी की सतह कठोर हो जाती है और वर्षा काल में वर्षा का जल जमीन के अन्दर नहीं जा पाता है। साथ ही मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्म कालीन धान/साठा धान की फसल तैयार होने के बाद अवशेषों को भी कृषकों ? द्वारा जलाया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक शोध के आधार पर पाया गया है कि एक किलोग्राम चावल उत्पादन में लगभग 4800 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि जिले में ग्रीष्म कालीन धान/साठा धान प्रतिबंधित है। यदि किसी भी कृषक द्वारा ग्रीष्म कालीन धान / साठा धान लगाया जाता है तो उसके विरुद्ध प्रशासनिक कार्यवाही की जाएगी।