बीजेपी में ‘भर्ती मेला’ जोरों पर है। लंबे वक्त से पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता असहज (इनसिक्योर) फील कर रहे


देशभर में चुनावी मौसम चल रहा है। नेताओं का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने का भी दौर चल रहा है। चुनावी मौसम में बीजेपी में बड़ी संख्या में नेता ज्वॉइन कर रहे हैं, इससे पार्टी के पुराने लोग असहज हो रहे हैं।

लोकसभा चुनाव के इस मौसम में बीजेपी में करीब हर रोज कोई न कोई किसी दूसरी पार्टी को छोड़कर शामिल हो रहा है। हर चुनाव की तरह इस बार भी चुनाव से पहले बीजेपी में ‘भर्ती मेला’ जोरों पर है। कुछ लोगों की बस जॉइनिंग हो रही है और कुछ को भर्ती के साथ आने वाले निकाय चुनाव में टिकट के लिए हुंकार भर रहे है। कई ऐसे नाम हैं जो जॉइन के साथ ही आने वाले निकाय चुनाव के लिए अभी से उम्मीदवार बन गए है। जिस तरह दूसरी पार्टी से लोग बड़ी संख्या में बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, क्या उससे बीजेपी के कार्यकर्ता और लंबे वक्त से पार्टी से जुड़े लोग असहज (इनसिक्योर) फील कर रहे हैं? इस सवाल पर बीजेपी के एक सीनियर नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि ऐसा सवाल हर चुनाव के वक्त पूछा जाता है और हर बार एक ही जवाब देता हूं कि-इसे ऐसे समझिए बीजेपी एक ट्रेन है। ट्रेन में यात्री भरे हैं। जब ट्रेन किसी स्टॉप पर रुकती है तो अंदर के यात्री सोचते हैं कि बाहर से और लोग ट्रेन में ना चढ़े, ताकि वह आराम से सफर कर सकें। लेकिन जब और यात्री चढ़ भी जाते हैं तो थोड़ा आगे जाकर जब ट्रेन हिलती डुलती है तो सभी के लिए जगह बन जाती है।

सवाल पूछने पर बीजेपी के एक दूसरे नेता ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सब बाहर से आए हुए लोगों को टिकट दिया जाएगा। जहां पार्टी मजबूत स्थिति में है वहां पार्टी के कार्यकर्ता को ही टिकट मिलेगा। जिन जगहों पर बीजेपी के पास कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं होगा जो जीत दिला सके, वहां दूसरी पार्टी से आए लोगों को टिकट दिया जाएगा और अब तो वह भी बीजेपी के ही होगए हैं। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता इसे समझते हैं और जो टिकट मांग रहे होते हैं उन्हें भी मालूम होता है कि वे जीत सकते हैं या नहीं। एक सीनियर कार्यकर्ता ने कहा कि जो लोग बीजेपी के खिलाफ बोलते रहे हैं और जिनके खिलाफ हम भी बोलते रहे हैं, वह जब साथ आ जाते हैं तो शुरू में थोड़ा असहज लगता है लेकिन राजनीति में यह सभी तरफ हो रहा है। इसमें क्या किया जा सकता है। जो लोग पार्टी नेताओं के खिलाफ खूब आग उगलते रहे हैं, उन्हें भी बीजेपी में शामिल कर लेना, अजीब नहीं लगता। जो लोग पहले उलटा सीधा बोलते थे वही अब हमारे नेताओं को माला पहनाकर स्वागत कर रहे हैं, तो इसमें क्या दिक्कत है। पार्टी में नए लोग आते हैं तो पार्टी का प्रभाव ही बढ़ता है।


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