रामपुर रज़ा पुस्तकालय में हिंदी साहित्य के कथाकार एवं उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की 145 भी जयंती के उपलक्ष में प्रदर्शनी का हुआ आयोजन


जनपद रामपुर:-👁👁

नित्य समाचार न्यूज़ एजेंसी⚡

प्रधान संपादक डीके सिंह🙏

👉रामपुर रज़ा पुस्तकालय एवं संग्रहालय में हिंदी साहित्य के महान कथाकार एवं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र जी के करकमलों द्वारा किया गया।

पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र जी ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम यहाँ विशेष रूप से मुंशी प्रेमचंद जी की 145वीं जयंती के अवसर पर उन्हें स्मरण करने हेतु एकत्रित हुए हैं। मुंशी प्रेमचंद उपन्यास-साहित्य की दुनिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर के एक महान लेखक रहे हैं। उनके समकक्ष यथार्थ का इतना सजीव चित्रण करने वाला साहित्यकार विश्व में अत्यंत दुर्लभ है। हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का स्रोत लगभग एक समान है, भाषा संरचना भी मिलती-जुलती है, काल खंड भी एक जैसा है, और विकास क्रम भी समान है। अंतर केवल लिपि का है—उर्दू को अरबी लिपि में तथा हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है, किंतु दोनों भाषाओं के भीतर जो भाव-भाषा है, वह एक जैसी है। हिंदी के शब्द उर्दू में और उर्दू के शब्द हिंदी में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। महात्मा गांधी ने इसे ‘हिंदुस्तानी’ कहा था। हिंदी और उर्दू को एक साथ देखना हो तो वह मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में संभव है। प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य में भाषायी भेद को समाप्त करते हुए भिन्नता से एकता की यात्रा को साकार किया है—यह उनकी साहित्यिक महानता का प्रमाण है। यदि कोई व्यक्ति भारतीय मनीषा को विशेषतः ग्रामीण भारत के जीवन को, ठीक प्रकार से समझना चाहता है, तो उसे प्रेमचंद की कथाओं में इसका समग्र और प्रामाणिक चित्रण मिलेगा। उनकी कृतियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणास्पद हैं।

मुंशी प्रेमचंद अपनी रचनाओं में ऐसे यथार्थपूर्ण चित्र प्रस्तुत करते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई समाजशास्त्री घटनाओं का सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन कर रहा हो। समाजशास्त्री जब किसी सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करता है, तो उसमें एक सैद्धांतिक पक्ष होता है—वह अधिकतर निबंधात्मक शैली में होता है—परंतु प्रेमचंद ने उसी सामाजिक यथार्थ को कथात्मक लोक भाषा और शैली में जीवंत चित्रण के साथ प्रस्तुत किया है। यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और दुर्लभ है। उन्होंने ग्रामीण जीवन की विसंगतियों, त्रासदियों, संघर्षों और सामाजिक विषमताओं को बिना किसी संकोच के उजागर किया है। कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, और जिस कालखंड में मुंशी प्रेमचंद ने लिखा, उस समय का समाज और जनजीवन उनके साहित्य में अत्यंत यथार्थ और मार्मिक रूप में परिलक्षित होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रेमचंद ने साहित्य को केवल कल्पना का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को प्रतिबिंबित करने का यंत्र माना। इस दृष्टिकोण से मुंशी प्रेमचंद निश्चित रूप से मानव इतिहास के सबसे महान साहित्यकारों और उपन्यासकारों में गिने जाते हैं। हम सभी रामपुर रज़ा पुस्तकालय परिवार की ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, और यह अपेक्षा करते हैं कि आगामी पीढ़ियाँ साहित्य के पठन-पाठन की ओर अधिक रुचि लें।  जनमानस में पठन-पाठन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करें, और उन्हें साहित्य के माध्यम से एक नवीन, समृद्ध, सुखद और शांतिपूर्ण समाज की रचना में भागीदार बनाएँ। रामपुर रज़ा पुस्तकालय इसी उद्देश्य से निरंतर प्रयासरत है कि अधिक से अधिक पाठक इससे जुड़ें और साहित्य के सृजनात्मक संसार से प्रेरणा लें।

इस विशेष प्रदर्शनी में मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से संबंधित हिंदी और उर्दू की दुर्लभ पुस्तकों, उपन्यासों और कहानियों को प्रदर्शित किया गया है। इनमें गोदान, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, कर्बला, प्रेमाश्रम, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, शतरंज के खिलाड़ी, प्रतिज्ञा, स्त्री जीवन की कहानियाँ, प्रेमचंद के विचार, सेवासदन, कायाकल्प, गांधी और प्रेमचंद, तथा मुंशी प्रेमचंद के कथा-साहित्य में सामाजिक चेतना जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं।

इसके अतिरिक्त, प्रो. मृदुला सिन्हा, ललित कला विभाग, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा बनाए गए चित्रों को भी प्रदर्शनी में स्थान दिया गया है।

प्रदर्शनी में मुंशी प्रेमचंद के जीवन से संबंधित विभिन्न दुर्लभ छायाचित्र भी प्रदर्शित किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं 1933 में अजनता सिनेटोन (मुम्बई फिल्म कंपनी) के साथ उनका अनुबंध, मुंशी प्रेमचंद निकेतन, जहाँ उन्होंने अनेक रचनाएँ लिखीं, मारवाड़ी कॉलेज, जहाँ वे 1931 में शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे, मुंशी प्रेमचंद का जयशंकर प्रसाद, ऋषभ चरण जैन और जैनेन्द्र प्रसाद के साथ लिया गया चित्र, साथ ही उनकी जन्मपत्री और सेवा पुस्तिका को भी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया है।

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का संचालन श्रीमती शबाना अफसर द्वारा किया गया।

प्रदर्शनी को सुसंगठित रूप से प्रदर्शित करने में शाजिया हसन, पूनम सैनी और पुष्पा का विशेष योगदान रहा।

 


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