*स्त्री सुरक्षा के उपायों आदि के दावों पर प्रश्नचिह्न..?*
*जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक हिंसा नहीं रुकेगी..!!*
पढ़ाई लिखाई का स्तर ऊंचा उठने व खानपान एवं फैशन और रहन-सहन आदि मामलों में आधुनिकता बोध पैदा होने के बावजूद स्त्रियों को लेकर भारतीय समाज में पुरुषवादी सत्ता शिथिल नहीं हो पाई है!इसी का नतीजा है कि स्त्रियों के खिलाफ अपराध हर बार बढ़े हुए ही दर्ज होते हैं! राष्ट्रीय महिला आयोग के पास इस वर्ष अभी तक कई हजार शिकायतें पहुंचीं हैं जिनमें से ज्यादातर गरिमा के साथ जीने के अधिकार को ध्वस्त करने से संबंधित थीं!उनमें घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना, छेड़छाड़,पीछा करने, यौन उत्पीड़न, बलात्कार तथा बलात्कार की कोशिशों की शिकायतें दर्ज कराई गई!इनमें कई सौ शिकायती ऐसे मामलों में पुलिस की उदासीनता को लेकर भी दर्ज कराई गईं हुई हैं! सबसे अधिक शिकायतें उत्तर प्रदेश से आईं!इससे एक बार फिर तमाम जागरूकता अभियानों,स्त्री और पुरुष में बराबरी की कोशिशों,स्त्री सुरक्षा के उपायों आदि के दावों पर प्रश्नचिह्न लगे हैं!उत्तर प्रदेश में स्त्री सुरक्षा के दावे सबसे ज्यादा बढ़-चढ़ कर किए जाते हैं!मगर स्त्री पर हिंसा की सबसे अधिक शिकायतें वहीं से मिली हैं!दरअसल स्त्रियों के प्रति अत्याचार का सिलसिला इसलिए नहीं रुकने पा रहा कि आम भारतीय समाज उन्हें सम्मान की नजर से देखता ही नहीं! बेशक कुछ परिवारों में लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई, नौकरियों और रोजगार वगैरह में प्रोत्साहन दिया जाने लगा है,मगर विडंबना है कि शिक्षित और नौकरीशुदा महिलाएं भी प्रताड़ना से मुक्त नहीं हो पाई हैं!ऐसी महिलाओं को पुरुष मानसिकता के अलग दुश्चक्र से गुजरना पड़ता है!घरेलू वातावरण में पुरुषवादी अहंकर का टकराव बड़ी आसानी से हिंसा में परिणत हो जाता है! रोजगार की जगहों पर यौन शोषण और मानसिक उत्पीड़न का जटिल घेरा है तो समाज के विभिन्न स्तरों पर उसकी आजादी और गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्रश्नांकित होते रहते हैं!महिला आयोग जरूर स्त्रियों के खिलाफ हो रहे इन अमानवीय व्यवहारों को लेकर कुछ सख्त कदम उठाते देखे जाते हैं पर जब शासन के स्तर पर भी महिलाओं को लेकर संकीर्ण नजरिया बना हुआ है तो उन्हें कितना न्याय मिल पाता होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है!जब तक स्त्री को लेकर समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक उसके खिलाफ हिंसा नहीं रुकेगी।