रुद्रपुर (30 मार्च 2025 )
नित्य समाचार न्यूज़ एजेंसी
*”दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान”* की ओर से *”भारतीय नव वर्ष विक्रमी सम्वत् २०८२”* के उपलक्ष्य में स्थानीय *सिटी क्लब* में दो दिवसीय *”विलक्षण योग एवं ध्यान शिविर”* का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान की ओर से *”श्री आशुतोष महाराज जी”* के शिष्य *स्वामी विज्ञानानन्द जी* ने बताया कि पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण करने के कारण आज भारतवासी अपनी सनातन भारतीय संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। वस्तुतः आज भारतीयों को वेलेंटाइन डे से लेकर प्रत्येक पाश्चात्य दिवस तो याद है परन्तु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला ऐतिहासिक, वैज्ञानिक व प्राकृतिक छटा से पूरित भारतीय नव वर्ष याद नहीं।
*”चैत्र शुक्ल प्रतिपदा”* की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्वता बताते हुए स्वामी जी ने बताया कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है। सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म भी इसी दिन हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं “कृणवंतो विश्वमआर्यम” का संदेश दिया | सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए। विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व बताते हुए स्वामी जी ने बताया की वसंत ऋतु का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। कृषि प्रधान देश भारत में फसल पकने का_ प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। मूलतः प्रत्येक भारतवासी को अपनी दिव्य आर्यावर्त संस्कृति से जुड़ते हुए पाश्चात्य नववर्ष ना मना कर भारतीय नववर्ष ही मनाना चाहिए।
दैहिक आरोग्यता के प्रति साधकों को₹ सजग करते हुए स्वामी जी ने बताया कि बढ़ते हुए शहरीकरण, प्रदूषण, अनियमित आहार विहार और ओद्योगिकीकरण से जहां वृक्ष कटाव से प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति पैदा हुई है वहीँ प्रदूषित वायु में सांस लेना भी दूभर हो चुका है। परिणामस्वरूप आज मधुमेह, टी०बी, कैंसर, डेंगू, चिकनगुनिया व् विविध विषम ज्वरों में अभिवृद्धि हुई है।स्वामी जी ने उपस्थित साधकों को अनुलोम विलोम, स्कन्ध चालन, पाद चालन, मंडूक आसन उत्तिष्ट तान आसन इत्यादि क्रियाओं का अभ्यास करवाया और साथ ही इनके दैहिक और वैज्ञानिक लाभों से परिचित भी करवाया।
इस उपलक्ष्य में “वंदे मातरम्” की अवधारणा के अनुरूप “प्रकृति संरक्षण” की ओर बल देते हुए समस्त ब्रह्म ज्ञानी साधकों ने पौधारोपण करने, नशा ना करने चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण करने का सामूहिक संकल्प भी लिया।
कार्यक्रम का आरम्भ विधिवत् वेद मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। साधकों के सामूहिक ध्यान के साथ कार्यक्रम के अंत में साध्वी भार्गवी भारती व सिमरन भारतीे ने शान्ति मन्त्र का उच्चारण कर विश्व कल्याण की प्रार्थना भी की। कार्यक्रम के उपरान्त साधकों के लिए भंडारे की व्यवस्था भी की गई।