प्राइवेट स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबों का खेल, अभिभावकों की जेब पर भारी


जनपद रामपुर :- नित्य समाचार न्यूज़ एजेंसी                                  बिलासपुर: -:-  सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकों का चलन बंद होने का नाम नहीं ले रहा है। मॉन्टेसरी स्कूलों में भी एनसीईआरटी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल करने का फरमान पूरी तरह से हवाई साबित हो रहा है। सभी मॉन्टेसरी स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकें चलाई जाती हैं, जो बाजारों में तय दुकानों पर ही मिलती हैं। पुस्तक विक्रेता स्कूल संचालकों को मोटा कमीशन देकर अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने से बाज नहीं आ रहे हैं। कई स्कूल स्वयं बच्चों को कॉपियां-किताबें व ड्रेस देकर अधिक दाम वसूल रहे हैं।

अफसरों ने स्कूलों को मान्यता देने के बाद वहां संचालित पाठ्यक्रमों व अन्य संसाधनों की जांच करना मुनासिब नहीं समझा। इससे शिक्षा के नाम पर धन उगाही का कारोबार धड़ल्ले से फल-फूल रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फरमान जिले के स्कूल संचालकों की मनमानी के सामने दम तोड़ता नजर आ रहा है।

बात शुरू करते हैं तहसील बिलासपुर मै संचालित बुक सेंटरों की। यहां सीबीएसई बोर्ड से संचालित  नामचीन स्कूलों, नगर के कई प्रतिष्ठित स्कूलों और यूपी बोर्ड से संचालित  स्कूलों की किताबें मिलती हैं।

नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही यहां नर्सरी से 12वीं कक्षा तक के बच्चों व उनके अभिभावकों की भीड़ जुटने लगी है। कक्षा वार किताब व कॉपियों का बंडल तैयार रहता है। इसका मूल्य भी कक्षावार रजिस्टर पर अंकित होता है। नर्सरी की किताबों का मूल्य तीन हजार व आठवीं की कॉपी-किताबों का मूल्य 7-8 हजार रुपये तक है। इसी तरह शहर के अन्य पुस्तक विक्रेताओं के यहां भी पौ-बारह है। यहां नगर के सीबीएसई बोर्ड के विद्यालयों के अलावा नामचीन स्कूलों की किताबें मिलने का एकमात्र स्थान है। खास बात यह है कि इन दुकानों के संचालक अभिभावकों को खरीदी गई कॉपी-किताबों की पक्की रसीद नहीं देते हैं। मांगने पर सादी पर्ची पर लिखकर थमा दिया जाता है।

स्कूलों में इस बार किस दुकान से किताब-कॉपियां लेनी हैं, इसका लिखित पर्चा नहीं दिया जा रहा है।  पहले  पुस्तक विक्रेताओं द्वारा कक्षावार किताबों की सूची बच्चों को दी जाती थी। इसमें दुकान का नाम, पता व फोन नंबर सहित अंकित रहता था। इस बार अभिभावकों को सीधे दुकान का नाम बताया जा रहा है। दुकानदार भी अपनी दुकान का पर्चा काटने के बजाय स्कूल के नाम का पर्चा काट रहे हैं।

 


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